शहरी से हो गए हैं गाँव के लोग
खुद ही में खो गए हैं गाँव के लोग।
कभी एक का दर्द सबका दर्द होता था
अब बड़े बेदर्द हो गए हैं गाँव के लोग।
एक गाँव से दस गाँव की ख़बर रखते थे
अपनों से बेख़बर हो गए हैं गाँव के लोग।
किस्से कहानियों में रात कटती थी
टीवी - मोबाइल के हो गए हैं गाँव के लोग।
पलायन जिस तरह सबको बहाकर ला रहा है
इक दिन कहोगे ग़ायब हो गए हैं गाँव के लोग । ~ प्रवेश ~
खुद ही में खो गए हैं गाँव के लोग।
कभी एक का दर्द सबका दर्द होता था
अब बड़े बेदर्द हो गए हैं गाँव के लोग।
एक गाँव से दस गाँव की ख़बर रखते थे
अपनों से बेख़बर हो गए हैं गाँव के लोग।
किस्से कहानियों में रात कटती थी
टीवी - मोबाइल के हो गए हैं गाँव के लोग।
पलायन जिस तरह सबको बहाकर ला रहा है
इक दिन कहोगे ग़ायब हो गए हैं गाँव के लोग । ~ प्रवेश ~
आज के हालात देख कर ऐसा लगता हैं कि आने वाले वक्त में हम गांव की संस्कृती को ढूंढते रह जाएंगे।
ReplyDeleteसही कहा
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