Friday, December 5, 2014

आओ पढ लो मुझे

आओ पढ लो मुझे
जैसे पढी थी बचपन में
दो एक्कम दो
दो दूनी चार,
और कंठस्थ किया था
अ से अनार
आ से आम,
देखो ... देखो
तुम्हें आज भी याद है,
उसी मस्ती और
बेफिक्री से पढो |
देखो वैसे न रटना
जैसे रटे थे
बीजगणित के सूत्र,
मतलब के लिये पढे
पास हुए और भूल गये | ~ प्रवेश ~

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (06-12-2014) को "पता है ६ दिसंबर..." (चर्चा-1819) पर भी होगी।
    --
    सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर

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