पूरब से उग आयेगा
फिर पश्चिम में छिप जायेगा
साँझ ढलेगी फिर वैसे
चंदा नभ में छा जायेगा
फिर ओस गगन से धीरे - धीरे
धरती पर उतरती है
ये भी वैसे ही गुजरेगी
जैसे हर रात गुजरती है,
भूखा, भूखा सो जायेगा
ठण्डा - ठण्डा पानी पीकर
बिन चादर के ठिठुरेगा
मर - मरकर और जी - जीकर,
चंदा - सूरज की साजिश से
फिर इक बार सुबह होगी
फिर हताश आशाओं की
नये दिन से सुलह होगी,
बेरोजगार फिर सड़कों पर
काम तलाशेगा दिन भर
घर से जैसा निकला था
वैसे ही शाम लौटेगा घर,
नया साल बस बदलेगा
कुछ इश्तहार अख़बारों पर
नए कैलेंडर लटकेंगे
घर - दफ्तर की दीवारों पर,
वही पिछला उपदेश सुनो
नित नवकर्म में तन्मय हो
सभी मित्रों - अमित्रों का
नववर्ष मंगलमय हो । ~ प्रवेश ~
फिर पश्चिम में छिप जायेगा
साँझ ढलेगी फिर वैसे
चंदा नभ में छा जायेगा
फिर ओस गगन से धीरे - धीरे
धरती पर उतरती है
ये भी वैसे ही गुजरेगी
जैसे हर रात गुजरती है,
भूखा, भूखा सो जायेगा
ठण्डा - ठण्डा पानी पीकर
बिन चादर के ठिठुरेगा
मर - मरकर और जी - जीकर,
चंदा - सूरज की साजिश से
फिर इक बार सुबह होगी
फिर हताश आशाओं की
नये दिन से सुलह होगी,
बेरोजगार फिर सड़कों पर
काम तलाशेगा दिन भर
घर से जैसा निकला था
वैसे ही शाम लौटेगा घर,
नया साल बस बदलेगा
कुछ इश्तहार अख़बारों पर
नए कैलेंडर लटकेंगे
घर - दफ्तर की दीवारों पर,
वही पिछला उपदेश सुनो
नित नवकर्म में तन्मय हो
सभी मित्रों - अमित्रों का
नववर्ष मंगलमय हो । ~ प्रवेश ~
सार्थक रचना
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