आओ पढ लो मुझे
जैसे पढी थी बचपन में
दो एक्कम दो
दो दूनी चार,
और कंठस्थ किया था
अ से अनार
आ से आम,
देखो ... देखो
तुम्हें आज भी याद है,
उसी मस्ती और
बेफिक्री से पढो |
जैसे पढी थी बचपन में
दो एक्कम दो
दो दूनी चार,
और कंठस्थ किया था
अ से अनार
आ से आम,
देखो ... देखो
तुम्हें आज भी याद है,
उसी मस्ती और
बेफिक्री से पढो |
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (06-12-2014) को "पता है ६ दिसंबर..." (चर्चा-1819) पर भी होगी।
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सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
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