कोयल अब इस उजाड़ में बोलती नहीं ।
मिसरी सी बोली कानों में घोलती नहीं ।।
नदी के बीच में पत्थर प्यासे पड़े हैं ।
पानी नहीं तो कश्ती कोई डोलती नहीं ।।
उसको कहा तू लड़की है , छोड़ बचपना ।
घर पहुँचने पर मुन्नी जेबें टटोलती नहीं ।।
सड़क पर देखा था कत्लेआम सभी ने ।
ये भीड़ निरी गूँगी है , जुबाँ खोलती नहीं ।।
हमदर्द नहीं है , सरकार बनी बैठी है ।
गरीब को इंसान सा तोलती नहीं ।।
" प्रवेश "
मिसरी सी बोली कानों में घोलती नहीं ।।
नदी के बीच में पत्थर प्यासे पड़े हैं ।
पानी नहीं तो कश्ती कोई डोलती नहीं ।।
उसको कहा तू लड़की है , छोड़ बचपना ।
घर पहुँचने पर मुन्नी जेबें टटोलती नहीं ।।
सड़क पर देखा था कत्लेआम सभी ने ।
ये भीड़ निरी गूँगी है , जुबाँ खोलती नहीं ।।
हमदर्द नहीं है , सरकार बनी बैठी है ।
गरीब को इंसान सा तोलती नहीं ।।
" प्रवेश "
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