एक कड़ाही है , एक थाली है ।
रसोई अभी संभाली है ।
जुगाड़ भी है आँच का ।
मौका है कुछ जाँच का ।
कुछ शब्द रखे हैं छाँटकर ।
स्वादानुसार बाँटकर ।
अलग - अलग मसाले हैं ।
सबके स्वाद निराले हैं ।
कोई तेज है , कोई फीका है ।
अपना - अपना तरीका है ।
ये सच है , थोड़ा तीखा है ।
मीठा बनना नहीं सीखा है ।
तैंयार सामग्री सारी है ।
कविता बनने की तैंयारी है ।
ट्रेनिंग अभी अधूरी है ।
सावधानी जरूरी है ।
प्यार की दे दी आँच नरम ।
तेल लक्ष्य का हुआ गरम ।
अब तड़का भावों का डाला ।
फिर मिला दिया है मसाला ।
शुरू हुई नयी पारी ।
डाले शब्द बारी - बारी ।
अब पानी डाला नापकर ।
पकने को छोड़ा ढाँपकर । (ढाँपकर = ढककर )
धीमी आँच पर पकाई ।
चम्मच से थोड़ी हिलाई ।
एक खुशबू आर - पार है ।
शायद ! कविता तैंयार है ।
" प्रवेश "
रसोई अभी संभाली है ।
जुगाड़ भी है आँच का ।
मौका है कुछ जाँच का ।
कुछ शब्द रखे हैं छाँटकर ।
स्वादानुसार बाँटकर ।
अलग - अलग मसाले हैं ।
सबके स्वाद निराले हैं ।
कोई तेज है , कोई फीका है ।
अपना - अपना तरीका है ।
ये सच है , थोड़ा तीखा है ।
मीठा बनना नहीं सीखा है ।
तैंयार सामग्री सारी है ।
कविता बनने की तैंयारी है ।
ट्रेनिंग अभी अधूरी है ।
सावधानी जरूरी है ।
प्यार की दे दी आँच नरम ।
तेल लक्ष्य का हुआ गरम ।
अब तड़का भावों का डाला ।
फिर मिला दिया है मसाला ।
शुरू हुई नयी पारी ।
डाले शब्द बारी - बारी ।
अब पानी डाला नापकर ।
पकने को छोड़ा ढाँपकर । (ढाँपकर = ढककर )
धीमी आँच पर पकाई ।
चम्मच से थोड़ी हिलाई ।
एक खुशबू आर - पार है ।
शायद ! कविता तैंयार है ।
" प्रवेश "
No comments:
Post a Comment