पचती नहीं तो पिलाई क्यों है ?
www.praveshbisht.blogspot.com
ये शहर इतना दंगाई क्यों है ?
यहाँ भाई का दुश्मन भाई क्यों है ?
हर कोई नफरत की मशाल लिये खड़ा है ।
मोहब्बत की लौ बुझाई क्यों है ?
बहू तो बेटी जैसी नहीं है यहाँ ।
बेटे सा मगर जमाई क्यों है ?
कोई किसी की सुनता ही नहीं ।
तो बेवजह मुँहबजाई क्यों है ?
सुकून दिली तमन्ना है अगर ।
कायदों में इतनी ढिलाई क्यों है ?
आधे बदन उघाड़े फिरते हैं ।
कपड़े से महँगी सिलाई क्यों है ?
देखिये तो सही लड़खड़ाते कदम ।
जब पचती नहीं तो पिलाई क्यों है ?
" प्रवेश "
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ये शहर इतना दंगाई क्यों है ?
यहाँ भाई का दुश्मन भाई क्यों है ?
हर कोई नफरत की मशाल लिये खड़ा है ।
मोहब्बत की लौ बुझाई क्यों है ?
बहू तो बेटी जैसी नहीं है यहाँ ।
बेटे सा मगर जमाई क्यों है ?
कोई किसी की सुनता ही नहीं ।
तो बेवजह मुँहबजाई क्यों है ?
सुकून दिली तमन्ना है अगर ।
कायदों में इतनी ढिलाई क्यों है ?
आधे बदन उघाड़े फिरते हैं ।
कपड़े से महँगी सिलाई क्यों है ?
देखिये तो सही लड़खड़ाते कदम ।
जब पचती नहीं तो पिलाई क्यों है ?
" प्रवेश "
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