बरबादी से सीखा
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गुलिस्तां ने सँवरना, बरबादी से सीखा ।
झगड़े से निकलना , फसादी से सीखा ।।
ताउम्र जो क़ैद को मुकद्दर समझता रहा ।
गुलामी का दर्द क्या है, आजादी से सीखा ।।
शादीशुदा को अब तलक डरपोक कहा करते थे ।
बर्दाश्त की हद क्या है , शादी से सीखा ।।
पीछे को लिपटती है जलती हुई मशाल की लौ ।
ये सबक जिंदगी का , दादी से सीखा ।।
यूं तो सुकून से जलती है शमां कमरे में ।
गिरना - औ - संभलना, आँधी से सीखा ।।
" प्रवेश "
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गुलिस्तां ने सँवरना, बरबादी से सीखा ।
झगड़े से निकलना , फसादी से सीखा ।।
ताउम्र जो क़ैद को मुकद्दर समझता रहा ।
गुलामी का दर्द क्या है, आजादी से सीखा ।।
शादीशुदा को अब तलक डरपोक कहा करते थे ।
बर्दाश्त की हद क्या है , शादी से सीखा ।।
पीछे को लिपटती है जलती हुई मशाल की लौ ।
ये सबक जिंदगी का , दादी से सीखा ।।
यूं तो सुकून से जलती है शमां कमरे में ।
गिरना - औ - संभलना, आँधी से सीखा ।।
" प्रवेश "
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteभइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ!
धन्यवाद श्रीमान ...
Deleteआपको भी भैया दूज की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें |