गुजारिश
जो हमने किया वो गजब तो नहीं ,
खतावार हैं बेअदब तो नहीं |
होंगे तेरे चाहने वाले लाखों ,
मगर हम जैसे वो सब तो नहीं |
झुंझला गई मेरी गुस्ताखी से ,
इंसां हैं दोनों , रब तो नहीं |
गुजारिश है माफ़ी की तुझसे खता की ,
तुझे कोई शिकवा अब तो नहीं |
गुजारिश मंजूर
शिकवा भी तुमसे तुम ही से गिला है ,
ये दर्द -ए - जिगर भी तुम ही से मिला है |
तरफदार हैं हम तुम्हारी खता के ,
अपनी तरफ भी यही सिलसिला है |
बंद पलकों में भी खयाल आपका है,
खुली आँखों में ख्वाबों का काफिला है |
समझ पाओ न अब भी जज्बात मेरे ,
तो समझो आपका कोई पेंच हिला है |
"प्रवेश"
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