ऐ माटी मेरे गाँव की
तू मुझे बुला ले पास तेरे
करूँ कैसे बयां कि हैं कैसे जुड़े
तेरे संग अहसास मेरे।
तू मुझे बुला ले पास तेरे
करूँ कैसे बयां कि हैं कैसे जुड़े
तेरे संग अहसास मेरे।
मेरी उँगली पकड़ मुझे लेकर चल
मेरे खेतों में खलिहानों में
जहाँ ठण्डी पवन सौंधी खुशबू
भर दे मेरी इन साँसों में।
तूने पाला मुझे तूने प्यार दिया
इन हाथों को कुछ काम भी दे
तेरे पास ही रोजी चलती रहे तो
तेरा बेटा शहर का नाम न ले।
मुझे तेरी कसम मेरा प्यार है तू
ये शहर मुझे नहीं भाता है
मैं रहना चाहूँ पास तेरे
यहाँ दम सा घुटा मेरा जाता है।
मैं करूँ दुआ वापस लौटूं
मेरे गॉंव की ओर कदम निकले
जब तक मैं जियूँ तेरे पास जियूं
तेरी गोद में मेरा दम निकले। ~ प्रवेश ~
भावपूर्ण रचना प्रवेश जी | गाँव हमारे जीवन की सबसे सघन छाव हैं और आत्मा का तत्व भी | गाँव की समर्पित इस स्नेहिल सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDelete