गोली है या काली है।
माँ छबछे प्याली है।।
वो ही लाद कलती है
वो ही दाँत लगाने वाली है।
माँ छबछे प्याली है।।
गुच्छा भी कलती है
फिल भी भोली-भाली है ।
माँ छबछे प्याली है।।
मैं उछकी बगिया का पौंधा
वो मेली माली है।
माँ छबछे प्याली है।।
उछने काले तीके छे
मेली नजल उताली है।
माँ छबछे प्याली है।।
माँ तेले बिन मेला जीवन
खाली - खाली है।
माँ छबछे प्याली है।। ~ प्रवेश ~
माँ छबछे प्याली है।।
वो ही लाद कलती है
वो ही दाँत लगाने वाली है।
माँ छबछे प्याली है।।
गुच्छा भी कलती है
फिल भी भोली-भाली है ।
माँ छबछे प्याली है।।
मैं उछकी बगिया का पौंधा
वो मेली माली है।
माँ छबछे प्याली है।।
उछने काले तीके छे
मेली नजल उताली है।
माँ छबछे प्याली है।।
माँ तेले बिन मेला जीवन
खाली - खाली है।
माँ छबछे प्याली है।। ~ प्रवेश ~
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-06-2017) को
ReplyDelete"प्रश्न खड़ा लाचार" (चर्चा अंक-2640)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक