जब भी कोई मुल्क
आपदा की चपेट में आता है,
मानवता का सबसे पावन
रूप सामने आता है ।
छोटी - छोटी बातों पर जो
आँख दिखाता बड़ी - बड़ी,
तोड़ के सीमा का बंधन,
पड़ौसी का धर्म निभाता है ।
मानवता है गुण प्राकृतिक,
और प्रलय भी प्राकृतिक है ।
प्रलय के जग जाने से
मानवता जगना स्वाभाविक है ।
ह्रदय और मस्तिष्क परस्पर
सामंजस्य बिठा लेते हैं,
मानव का ऐसा चरित्र
सच्चरित्र है और नैतिक है ।
मानवता और प्रलय दोनों
जाति - धर्म को नहीं मानते ,
दोनों ही नक़्शे पर खींची
रेखाओं को नहीं जानते ।
फिर भी रेखाओं के ऊपर
रेखाएँ खींचे जाते हैं
मानवता सो जाती है और
अब के मानव नहीं मानते । ~ प्रवेश ~
बहुत सही कहा
ReplyDelete