अनाड़ी के पत्थर की पहुँच से दूर
पेड़ की चोटी पर लगा आम
जिस तक पहुँच नहीं सकती
किसी तोते की चोंच भी ,
किसी दिन पके या न पके
जब झड़ेगा तो
कीड़े पड़ चुके होंगे ,
तब तक धन्य हो चुके होंगे
नीचे लगे आम
जिन्हें ग्वालों ने खाया
तोते कुतर गए
जो पहुँच में थे
राह चलते बुजुर्गों की लाठी की ।
किसी के काम न आया तो
अभिशाप सिद्ध होगा
चोटी पर लगना ।
शीर्षस्थ भी हो तो भी
सबकी पहुँच में रहो । ~ प्रवेश ~
एक अच्छी कविता के लिए बधाई |
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