Monday, April 21, 2014

वायदों की गंध तो फैली हुई है दूर तक ।

वायदों की गंध तो फैली हुई है दूर तक ।
पहुँच पाती है कहाँ कोई योजना मजबूर तक !!

आ गया है खेत तक खादी में लिपटा अजनबी ।
आज उसकी पहुँच जाने क्यों हुई मजदूर तक !!

आज उसको झोंपड़ों की याद फिर से आ गयी ।
आशियाँ जिसका है जन्नत , शाम - ए - मंजिल हूर तक ॥

चूसता है आम कहकर आदमी को ख़ास ही ।
हो गया है आम अब बदनाम से मशहूर तक ॥

कोई जलने के लिए , कोई जलाने के लिए ।
जल रहा है आदमी धूप  से तंदूर तक ॥  ~ प्रवेश ~ 

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-04-2014) को ""वायदों की गंध तो फैली हुई है दूर तक" (चर्चा मंच-1590) पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह। सुंदर प्रस्तुति।

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