किताब में दफ़न गुलाब की खुशबू अभी तक है ।
अरसा बीत गया है, मुझमें तू अभी तक है ॥
खेत - खलिहान सब तो नीलाम हो गये ।
झूठी बची मगर आबरू अभी तक है ॥
खिड़की पे दम तोडती हैं ख्वाहिशें वस्ल की ।
तुझसे मिलने की आरजू अभी तक है ॥
ग़ज़ल में अपने जिक्र से हैरान ना होना ।
मेरी कलम में सियाही , रगों में लहू अभी तक है ॥
~ प्रवेश ~
अरसा बीत गया है, मुझमें तू अभी तक है ॥
खेत - खलिहान सब तो नीलाम हो गये ।
झूठी बची मगर आबरू अभी तक है ॥
खिड़की पे दम तोडती हैं ख्वाहिशें वस्ल की ।
तुझसे मिलने की आरजू अभी तक है ॥
ग़ज़ल में अपने जिक्र से हैरान ना होना ।
मेरी कलम में सियाही , रगों में लहू अभी तक है ॥
~ प्रवेश ~
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