अरी ओ धूप !
इतनी कड़ाके की ठंड से
तुझमें अकड़ क्यों नहीं आती ?
तू सीधी ही पड़ रही है
आज भी जेठ की तरह |
थोड़ा बांकपन ला
थोड़ी सी टेढ़ी हो जा
और मुड़कर पहुँच जा
मेरे द़फ्तर के खोमचे में |
मैं इतना ताम - झाम लेकर
बाहर नहीं बैठ सकता | ~प्रवेश ~
इतनी कड़ाके की ठंड से
तुझमें अकड़ क्यों नहीं आती ?
तू सीधी ही पड़ रही है
आज भी जेठ की तरह |
थोड़ा बांकपन ला
थोड़ी सी टेढ़ी हो जा
और मुड़कर पहुँच जा
मेरे द़फ्तर के खोमचे में |
मैं इतना ताम - झाम लेकर
बाहर नहीं बैठ सकता | ~प्रवेश ~
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