Friday, December 27, 2013

अरी ओ धूप !

अरी ओ धूप !
इतनी कड़ाके की ठंड से 
तुझमें अकड़  क्यों नहीं आती  ?
तू सीधी ही पड़ रही है  
आज भी जेठ की तरह |
थोड़ा बांकपन ला 
थोड़ी सी टेढ़ी हो जा 
और मुड़कर पहुँच जा 
मेरे द़फ्तर के खोमचे में |
मैं इतना ताम - झाम लेकर 
बाहर नहीं बैठ सकता |  ~प्रवेश ~

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