माटी के दीपक जलाये जा रहे हो |
कौन सा अंधियारा मिटा रहे हो ?
रात काली ही रहेगी हर अमावस |
एक भ्रम सदियों से पाले जा रहे हो |
मन के दीपों को भी रौशन कर चलो अब |
अपने भीतर के भी तम को हर चलो अब |
आत्मा की शुद्धि भी हो लक्ष्य जिसका
डगर पर आशा भरे डग भर चलो अब | ~ प्रवेश ~
कौन सा अंधियारा मिटा रहे हो ?
रात काली ही रहेगी हर अमावस |
एक भ्रम सदियों से पाले जा रहे हो |
मन के दीपों को भी रौशन कर चलो अब |
अपने भीतर के भी तम को हर चलो अब |
आत्मा की शुद्धि भी हो लक्ष्य जिसका
डगर पर आशा भरे डग भर चलो अब | ~ प्रवेश ~
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