बेशक रहो शालीन, पर हुंकार भी रखो ।
लबों पर हँसी , कमर में कटार भी रखो ॥
इंसान हो तो प्यार से पुचकारना भला ।
हैवान हो तो जेहन में दुत्कार भी रखो ॥
बनना - सँवरना , रूप पर इतराना कब तलक ।
कोमलता रखो पर चेहरा रौबदार भी रखो ॥
अंजाम जो भी हो, अस्मत से बड़ा नहीं ।
अब तो लड़ाई आर की या पार की रखो ॥ ~ प्रवेश ~
लबों पर हँसी , कमर में कटार भी रखो ॥
इंसान हो तो प्यार से पुचकारना भला ।
हैवान हो तो जेहन में दुत्कार भी रखो ॥
बनना - सँवरना , रूप पर इतराना कब तलक ।
कोमलता रखो पर चेहरा रौबदार भी रखो ॥
अंजाम जो भी हो, अस्मत से बड़ा नहीं ।
अब तो लड़ाई आर की या पार की रखो ॥ ~ प्रवेश ~
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