मेघा रे ! तुम क्यों बरसे ?
मंदिर - मस्जिद कुछ न छोड़ा
सब बहा ले गये शहर से ।
क्या बड़ी - क्या छोटी
तोड़ डाली पर्वत की चोटी
भारी - भरकम पेड़ न छोड़े
कोई बचा न तुम्हारे कहर से ।
बह गये युवा - बूढ़े और बच्चे
तूने ना देखे झूठे - सच्चे
जो रह गये वो थर्र थर्र काँपे
तेरे प्रकोप के डर से ।
गलियाँ बह गयी, गाँव बह गये
उखड़ गये जब पाँव , बह गये
कोशिश का मौका भी न दिया
निकल भी न पाये घर से ।
मवेशी क्या इन्सान न छोड़े
तूने तो भगवान न छोड़े
छोड़े तो शमशान ही छोड़े
सब ख़त्म कर दिया जहर से ।
भवन ढहे ज्यों ताश के पत्ते
कुछ भी नहीं बचा अलबत्ते
तुम से तो सारे ही हारे
ताज उठा ले गये सर से ।
जिम्मेदार नहीं हो तुम ही
गुनहगार बराबर हम भी
हरे - भरे जंगल उजाड़कर
पहाड़ बना दिये जर्जर से ।
बहती ना तो और क्या करती
चिरी - फाड़ी नंगी धरती
तुम्हें कोसना मज़बूरी है
आफत आई अम्बर से ।
" प्रवेश "
मंदिर - मस्जिद कुछ न छोड़ा
सब बहा ले गये शहर से ।
क्या बड़ी - क्या छोटी
तोड़ डाली पर्वत की चोटी
भारी - भरकम पेड़ न छोड़े
कोई बचा न तुम्हारे कहर से ।
बह गये युवा - बूढ़े और बच्चे
तूने ना देखे झूठे - सच्चे
जो रह गये वो थर्र थर्र काँपे
तेरे प्रकोप के डर से ।
गलियाँ बह गयी, गाँव बह गये
उखड़ गये जब पाँव , बह गये
कोशिश का मौका भी न दिया
निकल भी न पाये घर से ।
मवेशी क्या इन्सान न छोड़े
तूने तो भगवान न छोड़े
छोड़े तो शमशान ही छोड़े
सब ख़त्म कर दिया जहर से ।
भवन ढहे ज्यों ताश के पत्ते
कुछ भी नहीं बचा अलबत्ते
तुम से तो सारे ही हारे
ताज उठा ले गये सर से ।
जिम्मेदार नहीं हो तुम ही
गुनहगार बराबर हम भी
हरे - भरे जंगल उजाड़कर
पहाड़ बना दिये जर्जर से ।
बहती ना तो और क्या करती
चिरी - फाड़ी नंगी धरती
तुम्हें कोसना मज़बूरी है
आफत आई अम्बर से ।
" प्रवेश "
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!