अँधेरे की हिमायत
मुझे शिकायत है कवियों से ,
कोसते रहते हैं अँधेरे को
कभी निशा कहकर, कभी तम कहकर ।
और कविता करते हैं चाँद पर,
तारों भरे आकाश पर,
तारीफ करते हैं चाँदनी की ,
उसकी शीतलता की और
साथ ही साथ चकोर की ।
लिख डालते हैं विरह गीत
धवल चाँदनी रात में
एकांत में बैठी नारी पर ।
जरा सोचो मेरी बिरादरी वालो
क्या ये संभव है
अँधेरे के बिना !!
चाँद - तारे तो दिन में भी होते हैं
अपनी ही जगह , उसी नील गगन में ,
तब तो तुम्हें चाँदनी शीतल नहीं लगती
ना ही चकोर बोलता है
और ना ही विरह होता है प्रेयसी को ।
ये मत भूलो
कि निशा ही प्रदान करती है
उषा को महत्त्व
और अँधेरे की वजह से
उजाला पूजा जाता है ।
" प्रवेश "
मुझे शिकायत है कवियों से ,
कोसते रहते हैं अँधेरे को
कभी निशा कहकर, कभी तम कहकर ।
और कविता करते हैं चाँद पर,
तारों भरे आकाश पर,
तारीफ करते हैं चाँदनी की ,
उसकी शीतलता की और
साथ ही साथ चकोर की ।
लिख डालते हैं विरह गीत
धवल चाँदनी रात में
एकांत में बैठी नारी पर ।
जरा सोचो मेरी बिरादरी वालो
क्या ये संभव है
अँधेरे के बिना !!
चाँद - तारे तो दिन में भी होते हैं
अपनी ही जगह , उसी नील गगन में ,
तब तो तुम्हें चाँदनी शीतल नहीं लगती
ना ही चकोर बोलता है
और ना ही विरह होता है प्रेयसी को ।
ये मत भूलो
कि निशा ही प्रदान करती है
उषा को महत्त्व
और अँधेरे की वजह से
उजाला पूजा जाता है ।
" प्रवेश "
समुद्र का पानी
ReplyDeleteसमुद्र का पानी खारा है तो क्या हुआ,
सूरज की तपिश सह कर भी,
बादल बन उड़ता है,
टकराता है पत्थरों से,पहाड़ों से,
फिर भी अमृत बन कर धरा पे बरसता है,
मत भूलो की समुद्र के गर्भ में,
कितने ही अनमोल मोती छिपे हैं,
मत भूलो की समुद्र मंथन ने ही.
हमें अमरत्व के अमृत दिए हैं,
इसी से सावन और भादों की ऋतू आती है ,
सूखी धरा पर हरियाली छा जाती है,
प्रकृति भी इस खारे पानी को मृदु बना कर
हर प्राणी का जीवन धन्य कर जाती है
समुद्र तो उनके लिए खारा है ,
जो किनारे बैठ कर स्वाद लेते है,
समुद्र की गहराई को नहीं पहचानते ,
उसके गुणों को नहीं जानते,
समुद्र में छिपे मोती नहीं पहचानते,
समुद्र के गर्भ में ही जीवन धरा है ,
समुद्र के अस्तित्व से ही जीवित यह धरा है.
समुद्र का पानी खारा नहीं सचमुच "खरा" है.
------जय प्रकाश भाटिया
12/6/2012