Tuesday, August 15, 2017

सीखा है

सच बोलना अपने घर से सीखा है।
झूठ मैंने तेरे शहर से सीखा है।

मैं समझता था गोलियों से मरते हैं लोग
ये हुनर मैंने तेरी नज़र से सीखा है।

कौन उंगली पकड़कर सिखाता है उम्र भर
बहुत कुछ मैंने इधर - उधर से सीखा है।

वक़्त तबीयत से तराशेगा एक दिन
चोट खाना बुत बने पत्थर से सीखा है।

झुकना कभी कहीं मेरी तालीम में न था
ज़माने ये मैंने तेरे डर से सीखा है। ~ प्रवेश ~

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