Sunday, November 19, 2017

गण्डक भिड़ गए हाथी से
जोशीले - करामाती से
भौं - भौं करते, कूं कां करते
गुस्सा होते, गाली बकते
बिगड़ैले उत्पाती से
गण्डक भिड़ गए हाथी से

हाथी तो मतवाला है
उसका अंदाज निराला है
कान नहीं देता भौं- भौं पर
वाकिफ़ गण्डक की जाति से
गण्डक भिड़ गए हाथी से

गण्डक गंदा काम करें
हाथी को बदनाम करें
हाथी राजा को परवाह नहीं
गण्डक की बकबाती से
गण्डक भिड़ गए हाथी से। ~ प्रवेश ~

Monday, November 13, 2017

पहाड़ों की आस

कुछ उम्मीद बँधी है पहाड़ों को
अपनों के लौट आने की
जो मुँह फेर गये थे
शहर की चकाचौंध से खिंचकर
क्योंकि अब धुंध से धुँधली पड़ रही है
शहर की चमक।
भवनों और वाहनों के जंगल में
हर साँस भारी होती जा रही है
ज़ान के लाले पड़ने को हैं
ज़हर घुला है दोनों में
हवा और राजअनीति
हर शख्स पर भारी है
हर श्वाँस पर भारी है।
बड़े भोले हैं पहाड़
नहीं जानते कि जो छोड़ चुके हैं
मरकर भी नहीं लौटेंगे
ताजी हवा, शीतल पानी
गुनगुनी धूप और मीठी बोली से इतर
पेट भरने को लगती है दो वक्त की रोटी
पहाड़ी भात भी खाते हैं
जो पहाड़ नहीं दे पायेंगे
शहर दे रहे हैं
ऐसा सोचते हैं शहरी पहाड़ी।
भला !! क्यों लौटेंगे !! ~ प्रवेश ~