रोटी के जुगाड़ में
मिट्टी जो कभी आई थी , बहकर के बाढ़ में ,
सौदा उसी का तय हुआ , रोटी के जुगाड़ में ।
पुरखों ने अपनी जान से ज्यादा जिसे चाहा ,
कौड़ियों के भाव बिक गयी , बेबसी की आड़ में ।
ख्वाब तो मेरे भी थे , शीशे के महल के ,
अब झोंपड़ी जर्जर पड़ी , निरे उजाड़ में ।
सोचता हूँ चुनाव लड़कर , घोटाला बड़ा करूँ ,
फिर ऐश से बसर हो , बैठे तिहाड़ में ।
प्रवेश
khwab sabhi sanjote hai par kismat sabkit ek jaise nahi hoti.. aur ghotale karna shayad sankarik parampara mein samahit hota hai...
ReplyDeletebahut badiya samyik chintan karati rachna ..