Tuesday, April 24, 2012

अनपढ़ माँ ?

अनपढ़ माँ ?


उसे मालूम है

कि विद्यालय कहाँ है 

मगर बता नहीं सकती

कि किस दिशा में है ।

कभी वास्ता ही नहीं पड़ा,

मुझे छोड़ने जाती थी 

मुख्य द्वार तक 

और वहीँ से लौट आती थी ।


वो नहीं पढ़ सकती थी 

मेरी अंकतालिका के अंक ,

दैनन्दिनी में लिखे निर्देश ,

चौराहे पर लगा साइनबोर्ड ,

टी. वी. स्क्रीन पर चलते समाचार ।


मगर वो पढ़ लेती है 

मेरे माथे की शिकन,

मेरे चेहरे के भाव ,

मेरे ह्रदय के उदगार ,

मेरे मन की हर बात ।


अंगूठा लगाती है 

अपने नाम की जगह 

दस्तखत के लिये 

मेरी अनपढ़ माँ ।


क्या वाकई अनपढ़ ?


प्रवेश 

Monday, April 23, 2012

इससे पहले कि दम निकले

इससे पहले कि दम निकले

इससे पहले कि दम निकले ,

नेकी की ओर कदम निकले ।


कोशिश करो , दे पाओ ख़ुशी ,

जिंदगी से सबकी गम निकले ।


मैं ना रहे , अहम् ना रहे ,

अगर निकले तो हम निकले ।


वादे तो बदनाम हैं टूटने के लिये ,

कभी ना टूटे वो कसम निकले ।


बसंत भी सदा नहीं रहता ,

सदाबहारी का वहम निकले ।


गर्दिशों में भी  जोश कम ना हो ,

चोट पड़े तो लहू गरम निकले ।


फकीर ही नहीं , दाता भी बन ,

ज्यादा ना सही तो कम निकले ।


खुदा नहीं तू , खिलौना भर है ,

दिलोदिमाग से ये भरम निकले ।


प्रवेश 

Monday, April 16, 2012

रचनाधर्मिता

रचनाधर्मिता 

पाठक
मशक्कत करे
भौंहें सिकोड़े
पसीना बहाये
समझने के लिये
किसी रचना का भाव
या
खुद -ब - खुद
सपष्ट होता चला जाय
जैसे गिर जाती है
पीली पड़ चुकी पत्ती
स्वतः ही डाल से ,
पानी दौड़ पड़ता है
ढलान की ओर ।
कौन सी रचना
खरी उतरती है
रचनाधर्मिता पर !!!

                      प्रवेश 

Thursday, April 12, 2012

मोहतरमा दफ्तर जाने लगी हैं


मोहतरमा दफ्तर जाने लगी हैं

मोहतरमा दफ्तर जाने लगी हैं ,

घर खर्चे में हाथ बँटाने लगी हैं ।


मेरा बटुआ टटोलना बंद हुआ ,

अब तो खुद ही नोट दिखाने लगी हैं ।


चेहरे से घूँघट का परदा हटा है ,

अब चाँद सी नजर आने लगी हैं ।


मेरे हाथ की चपाती पसंद नहीं उनको ,

चपाती का आटा गुंधवाने लगी हैं ।


कपड़े धोना भी आता नहीं मुझको ,

शुरुआत में साबुन ही लगवाने लगी हैं ।


सुबह वाली बिस्तर की चाय बंद हो गयी ,

कोहनी मारकर हमको जगाने लगी हैं ।


घरेलू कामों का ढब कहाँ मुझको ,

अब डाँट डपटकर सिखाने लगी हैं । 



                                         प्रवेश