Saturday, April 28, 2012
Tuesday, April 24, 2012
अनपढ़ माँ ?
अनपढ़ माँ ?
उसे मालूम है
कि विद्यालय कहाँ है
मगर बता नहीं सकती
कि किस दिशा में है ।
कभी वास्ता ही नहीं पड़ा,
मुझे छोड़ने जाती थी
मुख्य द्वार तक
और वहीँ से लौट आती थी ।
वो नहीं पढ़ सकती थी
मेरी अंकतालिका के अंक ,
दैनन्दिनी में लिखे निर्देश ,
चौराहे पर लगा साइनबोर्ड ,
टी. वी. स्क्रीन पर चलते समाचार ।
मगर वो पढ़ लेती है
मेरे माथे की शिकन,
मेरे चेहरे के भाव ,
मेरे ह्रदय के उदगार ,
मेरे मन की हर बात ।
अंगूठा लगाती है
अपने नाम की जगह
दस्तखत के लिये
मेरी अनपढ़ माँ ।
क्या वाकई अनपढ़ ?
प्रवेश
Monday, April 23, 2012
इससे पहले कि दम निकले
इससे पहले कि दम निकले
इससे पहले कि दम निकले ,
नेकी की ओर कदम निकले ।
कोशिश करो , दे पाओ ख़ुशी ,
जिंदगी से सबकी गम निकले ।
मैं ना रहे , अहम् ना रहे ,
अगर निकले तो हम निकले ।
वादे तो बदनाम हैं टूटने के लिये ,
कभी ना टूटे वो कसम निकले ।
बसंत भी सदा नहीं रहता ,
सदाबहारी का वहम निकले ।
गर्दिशों में भी जोश कम ना हो ,
चोट पड़े तो लहू गरम निकले ।
फकीर ही नहीं , दाता भी बन ,
ज्यादा ना सही तो कम निकले ।
खुदा नहीं तू , खिलौना भर है ,
दिलोदिमाग से ये भरम निकले ।
प्रवेश
Monday, April 16, 2012
रचनाधर्मिता
रचनाधर्मिता
पाठक
मशक्कत करे
भौंहें सिकोड़े
पसीना बहाये
समझने के लिये
किसी रचना का भाव
या
खुद -ब - खुद
सपष्ट होता चला जाय
जैसे गिर जाती है
पीली पड़ चुकी पत्ती
स्वतः ही डाल से ,
पानी दौड़ पड़ता है
ढलान की ओर ।
कौन सी रचना
खरी उतरती है
रचनाधर्मिता पर !!!
प्रवेश
पाठक
मशक्कत करे
भौंहें सिकोड़े
पसीना बहाये
समझने के लिये
किसी रचना का भाव
या
खुद -ब - खुद
सपष्ट होता चला जाय
जैसे गिर जाती है
पीली पड़ चुकी पत्ती
स्वतः ही डाल से ,
पानी दौड़ पड़ता है
ढलान की ओर ।
कौन सी रचना
खरी उतरती है
रचनाधर्मिता पर !!!
प्रवेश
Thursday, April 12, 2012
मोहतरमा दफ्तर जाने लगी हैं
मोहतरमा दफ्तर जाने लगी हैं
मोहतरमा दफ्तर जाने लगी हैं ,
घर खर्चे में हाथ बँटाने लगी हैं ।
मेरा बटुआ टटोलना बंद हुआ ,
अब तो खुद ही नोट दिखाने लगी हैं ।
चेहरे से घूँघट का परदा हटा है ,
अब चाँद सी नजर आने लगी हैं ।
मेरे हाथ की चपाती पसंद नहीं उनको ,
चपाती का आटा गुंधवाने लगी हैं ।
कपड़े धोना भी आता नहीं मुझको ,
शुरुआत में साबुन ही लगवाने लगी हैं ।
सुबह वाली बिस्तर की चाय बंद हो गयी ,
कोहनी मारकर हमको जगाने लगी हैं ।
घरेलू कामों का ढब कहाँ मुझको ,
अब डाँट डपटकर सिखाने लगी हैं ।
प्रवेश
Subscribe to:
Posts (Atom)