Friday, October 4, 2013

क्या बदल जायेगी सूरत बेवजह चीत्कार से ?
सूरत बदलनी है तो बदलो वोट के हथियार से ।।

बाहर निकालो आस्तीनों में छिपे जो अब तलक ।
साँप कभी पालतू बनते नहीं पुचकार से ॥

बिक जाते हो रंग - बिरंगे कागजों और पानी में ।
अनजान हो तकदीर के निर्माण के अधिकार से ॥

मैं किसी दल के किसी नेता का सम्बन्धी नहीं ।
जागरूक करना चाहता हूँ लेखनी की धार से ॥

फिर से फेंके जायेंगे टुकड़े लुभाने के लिये ।
अभी - अभी पता चला है आज के अखबार से ॥

रहनुमा जो भी चुनो , होशोहवास में चुनो ।
बहस करते हो बहुत मामूली दुकानदार से ॥ ~ प्रवेश ~ 

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