एक कवि को सरेराह
तीन नकाबपोशों ने पकड़ा
कसकर जकड़ा
खूब घसीटा
बेदर्दी से पीटा
एक कोठरी में खींचा
जोर से भींचा
अँधेरा था घुप्प
सुनसान - चुप।
मिलकर साथ
बाँध दिए हाथ
घुटने मोड़कर
एड़ी कूल्हों से जोड़कर
नीचे बिठाया
खूब धमकाया।
एक ने मुँह खोला
अकड़कर बोला
क्यों इतना तना तू ?
किस मिट्टी का बना तू ?
क्या खाता है ?
शब्दजाल कहाँ से लाता है ?
कुछ भी लिख
चुनाव पर मत लिख
घोषणाओं पर मत लिख
अधर में लटकी
योजनाओं पर मत लिख।
घपलों को भी छोड़
घोटालों पर मत लिख
सफेदी के अंदर के
कालों पर मत लिख।
ये प्यार है
समझाइश है
ये मत समझ कि
जोर आजमाइश है।
तू काबिल है
समझदार है
हमारी पार्टी की ओर से
टिकट का हक़दार है।
कवि चुप रहा।
दो थप्पड़ रसीद कर
बालों को खींचकर
बैठ गया पहला
अब बोला अगला।
तू कवि-हृदय है
सहृदय है
मैंने पढ़ा है तुझे
प्रकृति पर तू
बहुत खूब लिखता है
पर्वत से गिरता झरना
तेरी कविता में
साक्षात् दिखता है।
तू नदी पर लिख
पहाड़ों पर लिख
घाम पर लिख
जाड़ों पर लिख
फूलों पर लिख
पत्तों पर लिख
डाली से लटके
छत्तों पर लिख।
आध्यात्म से जुड़
भौतिक को त्याग
मत लिख चल - अचल
संपत्ति का भाग
मेरे धनार्जन के
तरीके पर मत लिख
मेरे कारोबारी
सलीके पर मत लिख
मुझ पर मत लिख
मेरे बन्दों पर मत लिख
मेरे दान पर लिख
गोरखधंधों पर मत लिख।
ये ले खाली चेक
अपनी कीमत भर दे
अपनी कलम से
मुझे मुक्त कर दे।
कवि चुप रहा
अगला ऐंठ गया
दो थप्पड़ जड़कर
वो भी बैठ गया।
आयी तीसरे की बारी
घूसखोर अधिकारी
ने घटना को तोला
और दोनों से बोला
साहब
शायद आप नहीं जानते
लातों के भूत
बातों से नहीं मानते।
सिगरेट जलाओ
इसकी उँगलियों को दाग दो
पैरों से बाँधकर
उल्टा पंखे से टाँग दो।
शायद हमारी
समस्या को जान जाये
इतना करने से
शायद मान जाये।
दूसरा बोला
इसकी उँगलियों को काट दो
गली के आवारा
कुत्तों में बाँट दो।
बोला पहला
कुछ तो करना पड़ेगा
मेरे हिसाब से
इसे मरना पड़ेगा।
जोर- जबर्दस्ती कर
उसके सीने पर चोट किया
दो ने हाथ-पाँव पकड़े
एक ने गला घोंट दिया।
पहले ने कहा जो भी हो
लिखता कमाल था
मुझे तो बस अपनी
खिलाफत का मलाल था।
आओ अब इसका
दिमाग छानते हैं
इसकी कविताओं का
राज जानते हैं।
छैनी लगायी
मारा हथौड़ा
ढक्कन सा खोल दिया
सर को फोड़ा।
तीन जंतु
देखने लगे तंतु
कोशिकाओं का जाल
हुआ कमाल
हाथ लगी गुद्दी
छानने लगे बुद्धि।
मिले कुछ चित्र
चौंके तीनों मित्र
भूखे - नंगे बच्चे
मकान कच्चे
घास की झोंपड़ी
बारिश में रो पड़ी
गली बदबूदार
सड़क बीमार।
शिक्षित लाचार
बेरोजगार
नौकरी का इश्तहार
आवेदकों की कतार
सरकारी दफ्तर
घूसखोर अफसर
बेबस गरीबी
अफसर के करीबी।
कुछ चित्र सुहाने
नदी के मुहाने
रेत के टीले
बंजारों के कबीले
हरी - हरी घास
नीला आकाश
लहलहाता धान
मेहनतकश किसान।
उषा का उन्मेष
घर लौटता राकेश
पत्तों पर ओस
पंछियों का जोश
अँगड़ाते लोग
जोगियों का जोग
पानी की पीड़
नलके पर भीड़
ठनकते घड़े
खनकती चूड़ियाँ
औरतों के झगड़े
रोज के रगड़े।
अब तक की एल्बम
निकली बेदम
नो इंटरेस्ट
टाइम वेस्ट
मजा नहीं आया
एक भी चित्र न भाया।
पहले ने कुरेदा
भीड़ को देखा
पंगा हो रहा था
दंगा हो रहा था
देखता रहा एकटक
विचारा अचानक
मैं यहाँ जाऊँगा
वोट बनाऊँगा
जाति के नाम पर
धर्म के नाम पर
भेड़ चाल जनता को
टोपी पहनाऊँगा।
अगले चित्र में बस्ती
जमीन बड़ी सस्ती
दूसरे को भा गयी
ख़ुशी की झलक
उसके चेहरे पर आ गयी
तीसरे को कहा
ये जगह दिला
अजी महज कहने से
महफ़िल नहीं सजती
ये तो आप भी जानते हैं
कि एक हाथ से
कभी ताली नहीं बजती
निकलवाओ आदेश
हमें दो थमा
कुछ हमारे खाते में भी
कर दो जमा
आदेश इनका
तरकीब हमारी
कौड़ियों के भाव
ये जमीन तुम्हारी।
और भी थे चित्र
थक चुके मित्र
इसको गाड़ दो
क्रियाकर्म कर चलें
शाम होने को है
चलो घर चलें।
गड्ढा खोदकर
कवि को दफ़न करते हैं
नादान - कमअक्ल
जानते नहीं
इंसान मर जाता है
कवि नहीं मरते हैं।
~ प्रवेश ~
sundr
ReplyDeleteshukriya shriman
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