Friday, August 11, 2017

लिख दूँ

तुम कहो मैं किस्सा तुम्हारी ज़बानी लिख दूँ।
दो बात कहूँ और सारी कहानी लिख दूँ।

सारा शहर सुबह से खड़ा है कतार में।
आग ही लग जाये जो पानी लिख दूँ।

दो दिन अगर जो ज़िन्दगी के चैन से गुजरें।
तो नाम तेरे चार दिन की जवानी लिख दूँ।

तू साथ हो तो हर दिन खूबसूरत हो।
तू साथ हो तो हर शाम सुहानी लिख दूँ। ~ प्रवेश ~

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-08-2017) को "आजादी के दीवाने और उनके व्यापारी" (चर्चा अंक 2695) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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