Friday, June 20, 2014

रचना - रच ना |

तू रच ना
रचेगा तो
ख़त्म हो जाएगी
मौलिकता |
फूटने दे
ज्वालामुखी की तरह,
पानी सा बह जाने दे ,
रचेगा तो
दुनिया फिर कहेगी
रचना - रच ना | ~ प्रवेश ~ 

Monday, June 2, 2014

चोटी का आम

अनाड़ी के पत्थर की पहुँच से दूर 
पेड़ की चोटी पर लगा आम 
जिस तक पहुँच नहीं सकती 
किसी तोते की चोंच भी ,
किसी दिन पके या न पके 
जब झड़ेगा तो 
कीड़े पड़ चुके होंगे ,
तब तक धन्य हो चुके होंगे 
नीचे लगे आम 
जिन्हें ग्वालों ने खाया 
तोते कुतर गए 
जो पहुँच में थे 
राह चलते बुजुर्गों की लाठी की । 
किसी के काम न आया तो 
अभिशाप सिद्ध होगा 
चोटी पर लगना । 
शीर्षस्थ भी हो तो भी 
सबकी पहुँच में रहो । ~ प्रवेश ~