सुन रे पंछी - तू कल आना
आज नहीं घर में दाना ।
खाली चावल की थाली है
गेहूँ का पीपा खाली है ।
मैंने भी नहीं खाया खाना
आज नहीं घर में दाना ।
हाँ , मैं ही अन्न उगाता हूँ
दुनिया को खिलाता हूँ ।
मैं भूमिपुत्र, सबने माना
पर आज नहीं घर में दाना ।
मैं हूँ किसान, मेरे खेत नहीं
मिट्टी भी नहीं और रेत नहीं ।
मैं बिना हृदय का दीवाना
आज नहीं घर में दाना ।
हाथ नहीं फैलाता हूँ
भीख माँग नहीं खाता हूँ ।
मुझे आत्महन्ता ही कहलाना
आज नहीं घर में दाना ।
" प्रवेश "
आज नहीं घर में दाना ।
खाली चावल की थाली है
गेहूँ का पीपा खाली है ।
मैंने भी नहीं खाया खाना
आज नहीं घर में दाना ।
हाँ , मैं ही अन्न उगाता हूँ
दुनिया को खिलाता हूँ ।
मैं भूमिपुत्र, सबने माना
पर आज नहीं घर में दाना ।
मैं हूँ किसान, मेरे खेत नहीं
मिट्टी भी नहीं और रेत नहीं ।
मैं बिना हृदय का दीवाना
आज नहीं घर में दाना ।
हाथ नहीं फैलाता हूँ
भीख माँग नहीं खाता हूँ ।
मुझे आत्महन्ता ही कहलाना
आज नहीं घर में दाना ।
" प्रवेश "