Tuesday, October 30, 2012

अब वो जमाना लद गया

अब वो जमाना लद गया 

कुर्सी गयी और पद गया ।
अब वो जमाना लद गया ।।

मधुमक्खियाँ बेघर हो गयीं ।
आँधी में छत्ता - शहद गया ।।

सलाम नहीं करते एहसानमंद भी ।
रुतबा गया और कद गया ।।

भला वक़्त नश्तर चुभोता है दिल पर ।
गुजरा ऐंश गैर के सरहद गया ।।

अब हालत हो गयी परकटे सी ।
परवाज का दायरा बेहद गया ।।

अब वो जमाना लद गया ।।
                                     
                               " प्रवेश "

Thursday, October 25, 2012

होशियार या हो सियार

होशियार या हो सियार

तुम होशियार या हो सियार !
हो अक्लमंद या मंद अक्ल!

तुम धूप सेंक सकते हो
लेकिन धूप चुरा नहीं सकते ।
तुम उजाड़ सकते हो चंदनवन
पर शीतलता पा नहीं सकते ।

नदी से पानी चुरा लो ,
क्या प्रवाह भी चुरा पाओगे !
तेलरहित दीपक हो तुम
प्रकाश कहाँ से लाओगे !

रे नपुंसको .. बच्चा चुराकर
बाप नहीं बन सकते हो ।
बातें करके बड़ी - बड़ी
प्रताप नहीं बन सकते हो ।

रचना चुरा तो सकते हो ,
रचनात्मकता ला नहीं सकते ।
शेर की जूठन खाकर के
शेर  कहला नहीं सकते ।

तुम होशियार या हो सियार !!
                                         " प्रवेश "

Friday, October 19, 2012

बेटी की विदाई

बेटी की विदाई 

एक रूह मेरी रूह से पराई हो रही है ।
आज मेरी बेटी की विदाई हो रही है ।।

कुछ अजनबी रिश्ते निभाने जा रही है लाडली ।
कुछ पुराने रिश्तों से रुसवाई हो रही है ।।

तुमको अकेला छोड़कर , बाबा कभी ना जाऊँगी ।
आज खुद के ही वादे से बेवफाई हो रही है ।।

एक आँसू भी सुहाता था ना उसकी आँख में ।
आज दहाड़े मारकर भरपाई हो रही है ।।

प्रेम का प्रसाद हर पल मिले ससुराल में ।
मौजूद हर दिल से , यही दुहाई हो रही है ।।

दहेज़ में ले जा रही है , पुलिंदा तहजीब का ।
डोली में सवार मेरी उम्र की कमाई हो रही है ।।

                                                          " प्रवेश "

Friday, October 12, 2012

हमेशा याद रहता है

हमेशा याद रहता है

कभी भूलता नहीं हूँ तुम्हें याद करना ।
तुम्हें भुलाना भी हमेशा याद रहता है ।।

याद है अच्छी तरह तेरा जिंदगी में आना ।
तेरा चुपके से चले जाना भी हमेशा याद रहता है ।।

डूब जाना तेरी झील सी आँखों की गहराई में ।
तेरी जुल्फों तले सो जाना भी हमेशा याद रहता है ।।

जब मुझको जुदाई का अँधेरा घेर लेता है ।
तेरे नाम का दीपक जलाना भी हमेशा याद रहता है ।।

हर आहट में तेरे आने के अहसास का होना  ।
दरवाजे से बैरंग लौट जाना भी हमेशा याद रहता है ।।

                                                                " प्रवेश "



जब मेरे शहर में चुनाव होते हैं

जब मेरे शहर में चुनाव होते हैं

रूठकर मायके गयी बिजली भी आने लगती है ।
नुक्कड़ पर पानी की टोंटी आँसू बहाने लगती है ।
टूटी पगडण्डी नये सपने सजाने लगती है ।
सड़क अपने चेहरे पर कालिख पुताने लगती है ।
दादी की रुकी हुई विधवा पेंशन आने लगती है ।
खादी बिजूकों के सामने भी सर झुकाने लगती है ।
एक शख्सियत लाशों को ढांढस बंधाने लगती है ।
हर गली से मय की भीनी खुशबू आने लगती है ।
कमली भिखारन सुबह - शाम  बिरयानी खाने लगती है ।
फिर जैसे - जैसे नतीजों की खबर आने लगती है ।
दो - चार महीनों की रौनक घर वापस जाने लगती है ।
                                                      
                                                           "प्रवेश "

Tuesday, October 9, 2012

सांड और बैल

सांड और बैल 

अय्याश और आवारा सांड
धिक्कारता रहा ,
ताने देता रहा
गाडी में जुते बैल को
और दिखता रहा झूठी शान
अपने निठल्लेपन की ।

शाम हुई ,
सांड भटकता रहा
दर - ब - दर
टुकड़ों के लिये
और रात बितायी
सर्दी में ठिठुरकर ,
पौलिथिन खाकर ।

बैल को
छप्पर मिला और
खल में सना हुआ चारा ।

मेहनत करने वाले
कभी भूखे नहीं सोते
मगर
हर बैल की किस्मत
एक सी नहीं होती ।

छप्पर के संग चारा
और चारे के संग छप्पर
किस्मत वालों को नसीब होता है ।
                                                     
                                       " प्रवेश "

Friday, October 5, 2012

तुम आये

तुम आये

कोई करिश्मा मेरे हमसफ़र हो गया ।
तुम आये, मकान मेरा घर हो गया ।।

खामोश हो गया है चीखता सन्नाटा ।
उसे तुम्हारी मौजूदगी  का डर हो गया ।।

तन्हां रहती थीं महफ़िलें तुम बिन ।
खुशनुमा  फिर से दर - ब - दर हो गया ।।

बुत भी करने लगे हैं गुफ्तगू सी ।
जाने ऐसा क्या असर हो गया ।।

हांसिये पर आ गया दौर - ए - गुमनामी ।
मेरी पहचान का सारा शहर हो गया ।।

                                                           "प्रवेश "