Thursday, August 30, 2012

हाइकु - जवाब मिला

हाइकु - जवाब मिला

जवाब मिला
बनकर सवाल
नया बवाल  ।

                         " प्रवेश "

Tuesday, August 21, 2012

यूँ ही ..

कौन हाँकता है पराये खेत से ढोर !
कुछ यूं हो जाय तो खेत फिर पराया क्यों रहे || 1 

मुझे काफ़िर कह दे ऐ जमाने , कोई ऐतराज नहीं |
मज़हब के नाम पर इंसानियत से दगा न करवा || 2

मुझे सुधारने की तुमने ये जो जंग छेड़ी है ,
मेरी लाख कोशिशों के बाद भी तुम जीत जाओगी ।| 3

तुम गयी तो मुझे कोई ग़म ना हुआ ।
तुमने तो आते ही कहा था " लो मैं आ गयी " ।। 4

दिन भर के जश्न की भी अब शाम होने को आई है |
फिर मुद्दा भ्रष्टाचार का फिर वही महँगाई है || 5

दीवाना नही हूँ मगर दर्द जानता हूँ |
दीवाना होता तो बस फिर दीवाना होता || 6

नौ दिन बीते लिफ्ट के इंतजार में |
चलो अब छत पर जीने से चढा जाये || 7

राह तरक्की की इतनी भी मुश्किल न थी |
बस नाम के पिछले हिस्से से मात खा गये || 8

तुम हार लेना हराकर मुझे |
मुझे हारना है तुम्हें जीतकर || 9

वही जूतियाँ पहनते हैं शग़ल के लिये |
जिन्हें काँटों भरी राह पर चलना नहीं होता || 10

वो इस दफा मिले , बिलकुल बेगानों की तरह ..
खैर.. कोई बात नहीं .... उमर का तकाजा है ।। 11

दवा कोई भी हो , बेअसर ही जाती है ।
हम गरीबों पर कीमत का असर होता है ।। 12

जमाने के दिये जख्म भी बखूबी भरता है ।
वक़्त सा असरदार कोई मरहम नहीं देखा ।। 13

कोई दिल में घुस आया है , दीवारें फाँदकर ..
दिल का दरवाजा खुला छोड़ देने के बाद || 14

बहुत संभल - संभलकर बोलते हैं लोग ।
झूठ छिप न जाये , सच निकल न जाये ।। 15

जंग हुई नहीं और जंग खा गयी ..
तलवार भला और काम आती भी क्या || 16

वो अकड़कर देता रहा आवाज वक़्त को ...
दूसरा रुका नहीं , पहला झुका नहीं || 17

फेसबुक पर जता रही , जनता प्रकृति प्रेम ।
ना बोई गुठली आम की , ना ही बोई सेम ।| 18

शोक मनाती हवा आई है जंगल से अभी ,
लगता है फिर से कहीं कोई पेड़ कटा ।| 19

जलती सिगरेट फेंककर मतवाला चला गया ।
कलेजा खुद का और आशियाँ किसी का जला गया ।। 20

लोहे की क्या मजाल कि कटार   बन जाये ।
बिना ढाले - तराशे  ढाल या तलवार बन जाये ।| 21

मियाँ हम तो कर चुके हैं कोशिशें तमाम |
खुदा ही जाने कि उनको यकीन कब हो || 22

सुना है , तुमने पढ़ी है प्रेम की पाती |
भले ही मुझे न आती , ये भाषा तुम्हें तो आती !! 23

कभी बेटी, कभी प्रिया, कभी माता, कभी बहना |
नारी तेरे रूप अनेक , हर एक रूप का क्या कहना || 24

बिल्ली के जिम्मे , दही की हिफाजत ,
दही का हिसाब , भला मिलेगा कैसे !! 25

शायद इस बार हमें , मनाना नहीं आया |
वरना वो इस कदर, कभी रूठते ना थे || 26

ना छेद था कश्ती में , ना लहरों से टकराई |
कुछ अपने भी थे सवार , डूबने की वजह || 27

चलते चले जाना या ठहराव है जिंदगी |
दोनों ही मुसाफिरों को बेचैन पाया है || 28

पलट - पलट पोथियाँ , उम्र भी ढलने को है |
जिंदगी का सबक , मगर अधूरा है आज भी || 29

न दौरा पड़ेगा दिल का , न जुकाम न बुखार से ।
जिया हूँ प्यार से , जान जायेगी प्यार से ।। 30

शब्दरहित है शब्दकोष , एक भी शब्द कहाँ से लाऊँ ।
माँ तेरा वर्णन करने को, कोई शब्द जुटा ना पाऊँ ।। 31

हाथ ऐसे ना मिले जो एक निवाला दे सकें ।
हमदर्दी दुनिया को है जर्जर तस्वीरों के लिये ।। 32

कक्षा में यदि हो खड़ी , तो डाँट कर बिठाते हैं ।
और अगर ना हो खड़ी , तो दफ्तर से मँगाते हैं ।। 33

कुछ तो खासियत है चाँद में ...                                                                              
जो उसको तेरी मिसाल देते हैं || 34 

थाली में चाँद दिखाकर , जिद पूरी तो कर ली ..
क्या हो जब बंद कमरे में , ये जिद जोर पकड़ जाये || 35

जब - जब तुझे करीब पाया 
इबादत ढ़ोंग सी लगी | 36 

घर से तो मैं चल था बरसात थमने पर ही |
रस्ते में आते - आते लेकिन बरस गया फिर || 37

जब तलाशा तुझे तो पाया नहीं |
जब पाया तो खुद को ही गुम पाया || 38

जहाँ तू नहीं वहीं तलाश खत्म हो जाती है |
जहाँ तू वहाँ ढूँढने की कोशिश ही न हुई || 39

इतनी दूर न निकल आते , जन्नत की तलाश में |
जो माँ के कदमों में बैठे होते, गोद में सर रख लिया होता || 40

यूँ ही चलता रहेगा सड़कों पर दौर ए इम्तहान |
नतीजा कब तलक न जाने बेनतीजा रहेगा !! 41

कभी जी चाहता है कि वक्त ठहर जाये , मगर मानता नहीं |
खैर उसकी अपनी फितरत है , मेरी अपनी फितरत || 42

जाने कहाँ से झगड़कर आया था बादल !
अपना दुखड़ा मेरे शहर आके रोया || 43

घर में हंगामा चलेगा , बहस नहीं |
बहस के लिये तो सारी सड़कें खाली हैं || 44

जीते - जीते दम निकल गया |
जिंदगी मगर बेदम ही रही || 45

चोर तुम भी , चोर हम भी |
आओ मिलकर चोर - चोर चिल्लाएँ || 46

पतंग की डोर ही नाजुक थी,
और हम हवाओं से उलझ बैठे | 47

झूठ चिल्लाता रहा पुरजोर , मगर हार गया |
सच खामोश रहा , फिर भी बाजी मार गया || 48

कोई फरार है नोटों भरा बोरा लेकर |
किसी ने जिन्दगी गुजार दी कटोरा लेकर || 49

नींद बेसबर हो बिस्तर पर इंतज़ार करती रह गई |
हम चाँद की चाँदनी के आगोश में ही सो गये || 50

मुझको होने लगी तेरे घर के आईने से जलन ।
रोज दीदार मेरे ख्वाब का करने लगा है ।। 51

तुम बातें बहुत अच्छी करते हो भीड़ देखकर ।
बस एक गिला है , दिल में नहीं उतरते ।। 52

बड़ी तेज चल रही है बदलाव की बयार ।
कोई समझे तो सही टोपी का इशारा ।। 53

वो इस अदा से हारे हैं बरखुरदार ।
तुम जीतकर भी  जरूर हार जाओगे ।। 54

तुम्हें देखूं और बस देखता जाऊँ ।
तुम सामने होते हो, वक़्त ठहरा सा लगता है ।। 55

कोई भेड़ सा, भेड़ नहीं हैं भेड़ों के बीच में ।
जो मिमियाने के साथ में काटने का हुनर रखता है ।। 56

शुरू हो गया है दुआओं का दौर ।
लगता है हुनर पर यकीं ना रहा ।। 57

ये सरपंची करते हैं या ढाबे में नौकरी ।
दही कोई भी फैलाये , सफाई में लग जाते हैं ।। 58

कौन मरता है मौत आने से !!
लोग मरते हैं जान जाने से । 59

जतन तो सुकून सँभालने को करता हूँ ।
दर्द तो मेरा पालतू है ।। 60

ये कलम तुम्हारी तलवार से कम नहीं ।
ध्यान रहे , पैर न कट जाये बेड़ियाँ काटते हुये ।। 61

पहाड़ से गिरा और उठ खड़ा हुआ ।
जो गिरा नजर से तो लकवा मार गया ।। 62

तोड़ सको तो बेहद कमजोर है , वरना बहुत मजबूत ।
जंजीर को ये राज पता नहीं है ।। 63

दिल में रखना आसान है 
रहना मुश्किल ।। 64

गुड़ छोड़ देना 
लेकिन छोड़ने का दावा ना करना ।। 65

मैं केवल लिखता हूँ ।
आप उस सार्थक बनाते हैं ।। 66

गोश्त खाना तो वो बहुत पहले छोड़ देता ।
छुरा आज फिसलकर उँगली  पर आया है ।। 67

आज वक़्त अधूरा हिसाब करने आया ।
मैंने कुछ और वक़्त की मोहलत दे दी ।। 68

तुम्हारी जीत तो शुरू से ही शक के घेरे में थी ।
ऊपरी माला जो गिरवी रख बैठे ।। 69

कोई आम कहकर चूसेगा ।
कोई काट खायेगा सेब कहकर ।
सबको अपनी सेहत की है ।
आम और सेब का दर्द क्या जानें !! 70

दुःख में भले ही काम न आये 
किन्तु सच्चा मित्र वही है जो ख़ुशी के मौके पर बहकने न दे ।। 71

कर्म और काम का अंतर समझिये 
कर्म में लीन रहें , काम में नहीं ।। 72

हर सच बताया नहीं जाता ।
हर झूठ छिपाया नहीं जाता ।। 73

खुद न करे 
कभी तुम्हें याद करने की नौबत आये ।। 74

काश ... टूटे दिल रिपेयर होते ।
तो रोज नए अफेयर होते ।। 75

गाड़ी के पहियों के बीच
 उचित दूरी भी जरूरी है ।। 76

खुदा मेरे महबूब को थोड़ी तो अक्ल बख्श ।
इत्र छिड़ककर जाते हैं , तस्वीर खिंचाने के लिये ।। 77

उसे दागदार चाँद की मिसाल पसंद है ।
दूधिया ट्यूबलाइट से चिढ जाती है ।। 78

मारने की वजह तो दुश्मनों को चाहिये ।
दोस्त तो यूं ही बेवजह क़त्ल करते हैं ।। 79

अनपढ़ लोगों के बच्चे तरक्की कर भी लें ।
लापरवाह माँ - बाप का कोई क्या करे !! 80

कितना मुश्किल है ना 
खुद के इन्सान होने का दावा करना ।। 81

इंसान मौत की प्रतीक्षा में जी रहा है ।। 82

दो ही तो स्वाद हैं हर खेल के ।
क्या हुआ आज फिर खटाई मेरे हिस्से आई !! 83

इस कैद से कभी रिहाई भी दे ।
या खुदा ! ठण्ड दे तो रजाई भी दे ।। 84

बस इसीलिये जंगल का कानून मुझे भाता है ।
वहाँ मुकदमों की तारीखें नहीं होतीं ।। 85

दुनिया अलाव जलाने लगी है ।
धूप भी भाव खाने लगी है ।। 86           
      वो इसीलिये हमको बाजार ले के जाती हैं ।
खरीदार के साथ पल्लेदार होना चाहिये ।। 87

ये माना कि फैशन हर रोज बदलता है ।
कुछ कपड़े केवल पुतलों पे अच्छे लगते हैं ।। 88

एक सबक लिया है साँप पालकर ।
अब दोस्त बनायेंगे देखभाल कर ।। 89  

दिल का जरा गुबार निकला , 
गुस्सा सरेबाजार निकला |
मज़लूम फिर लाचार निकला , 
मुल्जिम रसूखदार निकला || 90

ठहर गया तो जहर बन गया |
आँसू निकल जाता तो मोती होता || 91

वादा करने में कोई हर्ज नहीं |
बशर्ते वादा लिखा न जाय || 92

देखिये मशरूफियत का आलम |
वो हमसे खुद का नाम पूछते हैं || 93

फिर मेरे नाम की सुपारी दी गयी होगी |
फिर मेरे बटुए से एक तस्वीर ग़ायब है || 94

ये ठंड भी सियासतदानों की हमदर्द निकली |
बदइंतजामी का इल्जाम अपने सर ले लिया || 95

हम सितारे लगा आसमान ओढ लेते हैं |
उन्हें गर्म रजाई में ठंड लगती है || 96

गर कमी है तो कमी रहने दो |
इसे जन्नत न बनाओ , जमीं रहने दो || 97

दिल की बात करने लगा हूँ |
मुझे कुछ होगा तो नहीं !! 98

जाने क्यों ये मुल्क मेरा , जज्बात जगाये बैठा है !
जागो , दुश्मन सरहद पर घात लगाये बैठा है || 99

अम्मी रूठे , अब्बा रूठे |
कभी न पागल डब्बा रूठे || 100      
   ये लो हमने आँखों से गुफ्तगू शुरू कर दी ।
दीवारो  अपने कानों को आराम करने दो ।। 101    

अच्छा हुआ मौके पर धूल उड़ गयी |
आँसुओं को निकलने का बहाना मिल गया || 102

कुछ तो हेर - फेर हो गयी |
आज साँझ को देर हो गयी || 103

खुदाया नासमझ को हसीं न बनाया कर |
दिल बेवजह खामोशियों का जवाब ढ़ूँढ़ता है || 104

यूँ तो दिल बेउस्ताद है मेरा |
बेतालीम होकर भी , हर जगह नहीं लगता || 105

तुम इतने भी अच्छे न होते |
जो मैं इतना बुरा न होता || 106

कुछ सामान लपेटना है |
क्यों न अखबार खरीद लें || 107

कुरेद सको तो कुरेद लो |
जख्म अब भरने को है || 108

लड़ लेते तो शायद फतह भी हो जाती |
तुम तो शिकस्त के भी हकदार नहीं || 109 

अब हम भी अंदाजा लगा लेते हैं रफ्तार से |
कौन डरकर भाग रहा है , कौन भाग रहा है प्यार से !! 110
 तुम्हें मोहब्बत की जमानत चाहिये |
ये लो .....दिल गिरवी रखा || 111

आज को बुरा नहीं कहता , कल इतना अच्छा न था |
आज को अच्छा नहीं कहता, कल इतना बुरा न था || 112 

जो मुँह में आया , लिख रहे हैं छाप रहे हैं |
जैसे गोबर के थेपले थाप रहे हैं |
दिल पर नहीं छपते , किताबों के पुलिंदे |
हम सर्दियों में जलाकर ताप रहे हैं | 113

मंजूर है तुम्हारी खुशी के लिये |
"अच्छी लग रही हो ", ये झूठ बोलना || 114   
  
हाल - ए - दिल यूं बेबाक न कहा करो |
यहाँ दिलवाले वाले कम , सिरफिरे बहुत हैं || 115

जाते - जाते वो ऐसा जख्म दे गया |
मरहम करते - करते मर हम गये || 116

बड़े जतन से तुमने यहाँ जो दूब पाली है |
मेरे गाँव में इसी को बंजर कहते हैं || 117

तुम पहली बार भीगे हो ....छटपटाओ |
हम तो जब से भीगे हैं ....बस भीगे हैं || 118

तुम्हारा सब कुछ मेरा । मेरा सब कुछ तुम्हारा ।
काश ! यकीन भी हो जाता । बाकी सब लौटा देते । | 119

उन्हें खबर है कातिल आयेगा,
अपने इर्द - गिर्द मजबूत किला रखते हैं |
जनता तो भेड़ - बकरी है, 
कसाई के लिये दरवाजा खुला रखते हैं || 120

तन्हा होता हूँ, तुमसे खूब बातें होती हैं |
तुम साथ हो, जाने कहाँ अल्फ़ाज़ गुम हो जाते हैं || 121

कड़ी धूप , तेज बरसात में खयाल आया ।
मैं अब तलक छतरी की तरह इस्तेमाल आया ।। 122

ये चटककर कीचड़ सिर पर न उछालतीं |
जो चप्पलों को इतनी छूट न दी होती ! ! 123

मैं चल पड़ा टूटी हुई चप्पलें लेकर |
सफर में राहगीर नंगे पाँव भी मिले || 124

खाली हाथ दर से जाने नहीं देता |
हकीम खुदा से कमतर नहीं || 125

बेहिसाब मिले मेरे चाहने वाले |
ना चाहने वालों ने हिसाब रखा है || 126

फूल तेरे कोमल स्पर्श से पीला है |
पानी तेरी आँख के नम से गीला है || 127

एक ही झटके में गम निकल गया |
उफ़्फ़ ...जीते - जीते दम निकल गया || 128

पेड़ से डाली छुड़ा ले गयी |
आँधी बहुत कुछ उड़ा ले गयी || 129

तुम आज कहते हो कि बंदर काटता है ,
इसको शौक न था , ये हुनर तुमने सिखाया है |
पहले गोद में और फिर कांधे पर लेकर ,
लाड़ से तुम्ही ने इसे सर पर चढ़ाया है |  130          

बेतरतीब बरसना चाहती हैं आँखें |
बारिशों से कह दो छतरी तान लें || 131     

जो बच निकले , मचाएँ शोर |
जो पकड़ा गया , वही चोर || 132

गड़गड़ाए होते, इशारा किया होता !
संभलने का एक तो मौका दिया होता !! 133

पलकों पर एक दस्तक है |
आँखें बंद करके देखता हूँ कौन है !
दरवाजे पर होती तो खोलकर देखता |  134

तलवार म्यान में रही 
काम जबान कर गयी | 135

दोस्त सा दुश्मन , दुश्मन सा दोस्त |
सियासत में कुछ भी ख़रा नहीं होता || 136

भाषा बड़ी कमाल की
कर सोच - समझकर यूज |
खुशियाँ सबके लिये बनीं
कर खुशियों को चूज | 137

इतना भी नहीं अच्छा, हर बार माफ़ करना |
तेरी माफ़ियों के साथ मेरी गुस्ताखियाँ बढ़ी हैं || 138

कोई घुटने बचा सका , कोई वक़्त बचा सका |
दोनों भला कौन कम्बख्त बचा सका !! 139

छत पर चढ़ो , चाँद तो देखो |
किसी घसिआरिन की दराँती का हत्था टूट गया || 140

अँधेरा उनके घर होता है
जिनके बिजली का कनेक्शन हो |
ढिबरी वालों के घर की
कभी बिजली नहीं जाती | 141                          
                                                     ~ प्रवेश ~

Friday, August 17, 2012

अँधेरे की हिमायत

अँधेरे की हिमायत 

मुझे शिकायत है कवियों से ,
कोसते रहते हैं अँधेरे को
कभी निशा कहकर, कभी तम कहकर ।
और कविता करते हैं चाँद पर,
तारों भरे आकाश पर,
तारीफ करते हैं चाँदनी की ,
उसकी शीतलता की और
साथ ही साथ चकोर की ।
लिख डालते हैं विरह गीत
धवल चाँदनी रात में
एकांत में बैठी नारी पर ।
जरा सोचो मेरी बिरादरी वालो
क्या ये संभव है
अँधेरे के बिना !!
चाँद - तारे तो दिन में भी होते हैं
अपनी ही जगह , उसी नील गगन में ,
तब तो तुम्हें चाँदनी शीतल नहीं लगती
ना ही चकोर बोलता है
और ना ही विरह होता है प्रेयसी को ।
ये मत  भूलो
कि निशा ही प्रदान करती है
उषा को महत्त्व
और अँधेरे की वजह से
उजाला पूजा जाता है ।

                                             " प्रवेश "

Tuesday, August 14, 2012

मैं कौन हूँ !!

मैं कौन हूँ !!

दोस्ती सबसे पक्की है
सबकी मुझसे पहचान है ।
दुनिया में ऐसा कोई नहीं
जो मुझसे अनजान है ।
तुमने देखा होगा मुझे
पौलिथिन खाती गाय में ,
बर्फ में पंजा डालकर
मछली ढूँढ़ते सफ़ेद भालू में ,
जान जोखिम में डालकर
शेर के इलाके में चरने जाते हिरणों में ,
पुरानी सूखी हड्डी पर
दाँत पैने  करते हुए कुत्ते में,
दरवाजे पर हाथ फैलाये खड़े
सूखते कंकालों में।
तुमने ढाबे से खाना चुराता हुआ
बच्चा तो देखा ही  होगा ।
और भी कई जगह
मुलाकात हुई होगी हमारी ।
चलो दूसरे संकेत देती हूँ
शायद अब पहचान जाओ ।
तुम ही नहीं बल्कि हर कोई
दौड़ - धूप करता है
मुझे बुझाने की खातिर ।
जी नहीं ...
आग नहीं हूँ मैं ...
मैं बसती  तो हूँ पेट में
पर असर दिमाग पर करती हूँ ।
भर पेट अगर खाना मिल जाये
तो एक पल नहीं ठहरती हूँ ।
मेरे बारे में इससे अधिक
और कुछ ना कहा जाये ,
मैं जो भी हूँ  , गर लग जाऊँ
तो इन्सान - इन्सान को खा जाये ।

                                                               " प्रवेश "

Tuesday, August 7, 2012

बाढ़ का कहर - श्रद्धांजलि

बाढ़ का कहर - श्रद्धांजलि 

इन्द्रदेव प्रसन्न हैं या रुष्ट
कह पाना मुश्किल है
शायद रुष्ट .. जी नहीं
अत्यंत रुष्ट ।
प्रसन्नता होती तो
निर्दोष क्यों मारे जाते !
अच्छी फसल के लिये
अच्छी बरसात का इन्तजार ,
और उसी इन्तजार के बीच
अतिवृष्टि .. सब तहस - नहस ।
आलिशान भी बेबस
झोपड़ियों का तो ठौर ही कहाँ ,
जो रास्ते में आया
साथ हो लिया ।
उम्र का भी लिहाज न किया
बैरन बाढ़ ने ,
बच्चा - बूढा - जवान ,
जो मिला उसी को ले चली ।
जब जोर न चला
तथाकथित सर्वशक्तिमान का ,
तो क्या हस्र हुआ होगा
भला बेजबान जानवरों का !
सब निकल पड़े
अप्रत्याशित दीर्घ यात्रा पर ,
जिसकी मंजिल काल और
विश्राम ... चिर विश्राम ।
याद आता है प्रसंग
ब्रज पर इन्द्रदेव के प्रकोप का ,
किन्तु नजर नहीं आता
कहीं कोई गिरधारी
जो मदद को आगे आये,
जिसकी शरण में जाया जाये
अपना दुखड़ा सुनाया जाये ।

                                                "प्रवेश "