Friday, June 15, 2012

जिंदगी हूँ


जिंदगी हूँ

जिंदगी हूँ , जिंदगी को क्या लिखोगे !
कभी साहिल कभी समंदर गहरा लिखोगे ।


हार जाओगे तो काली रात शायद, 
जीत जाओगे नया सहरा लिखोगे ।


तुम्हारी मर्जी से गर चलने लगूँ तो 
नई धूप का मुझको कोई  कतरा लिखोगे ।


मुआहिदा करना पड़े मुझसे अगर तो 
दुश्मन -ए -  रौशनी कुहरा लिखोगे ।


बदलते हो रोज मेरे मायने तुम 
आज कुछ , जाने कल क्या - क्या लिखोगे ।


                                                      प्रवेश 

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