Wednesday, May 16, 2012
Thursday, May 10, 2012
Friday, May 4, 2012
रोटी के जुगाड़ में
रोटी के जुगाड़ में
मिट्टी जो कभी आई थी , बहकर के बाढ़ में ,
सौदा उसी का तय हुआ , रोटी के जुगाड़ में ।
पुरखों ने अपनी जान से ज्यादा जिसे चाहा ,
कौड़ियों के भाव बिक गयी , बेबसी की आड़ में ।
ख्वाब तो मेरे भी थे , शीशे के महल के ,
अब झोंपड़ी जर्जर पड़ी , निरे उजाड़ में ।
सोचता हूँ चुनाव लड़कर , घोटाला बड़ा करूँ ,
फिर ऐश से बसर हो , बैठे तिहाड़ में ।
प्रवेश
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