Wednesday, May 4, 2011

पिता हूँ मैं !

पिता हूँ मैं !

बचपन में बहन की हत्या का 
कारण बना दिया मुझको ,
कोई जुर्म नहीं किया,
मुजरिम अकारण बना दिया मुझको |

दादी माँ को नारी होकर 
पोती से है रोष बड़ा ,
इसमें मेरा, पिताजी और
 दादाजी का दोष है क्या ?

बड़ा हुआ तो दहेज़ का झोला 
मेरे कंधे पर टांग दिया,
जो बड़ी बहन को दिया,
वही छोटी ने भी मांग लिया |

दिन भर मेहनत - मजदूरी से
जो भी कमाकर लाता हूँ ,
एक निवाला कम खाता हूँ ,
पर बच्चों को पढ़ता हूँ |

बच्चों की कलम - दावात की खातिर 
एक चाय नहीं पीता हूँ मैं ,
बाकी समाज से गिला नहीं,
कवियों से उपेक्षित पिता हूँ मैं |

जब बच्चे तकलीफ में होते हैं,
मैं भी तकलीफ में होता हूँ ,
माँ तो आँसू बहा ले लेकिन   
मैं दिल ही दिल में रोता हूँ |

ये  बच्चे जीते हैं मुझमे ,
इन बच्चों में जीता हूँ मैं ,
बाकी समाज से गिला नहीं,
कवियों से उपेक्षित पिता हूँ मैं |

कवियों को लगता है मुझे
बच्चों और समाज की फ़िक्र नहीं,
इसीलिए किसी रचना में,
मेरा कोई जिक्र नहीं |

बच्चों और समाज की चिंता में 
भूसे की जलती चिता हूँ मैं,
बाकी समाज से गिला नहीं,
कवियों से उपेक्षित पिता हूँ मैं |


                                                   "प्रवेश"






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