Thursday, March 17, 2011

प्रलय में प्रेम

प्रलय में प्रेम 

कभी सुनामी दहलाती ,
कभी भूकंप से काँपती ,
आज धरा की हालत देखो ,
चोट खाये साँप सी |

आबोहवा नापाक हुई ,
भर चुकी अधर्म की गगरी ,
इक दिन तो कटना ही था ,
कब तक खैर मनाती बकरी !

ऐसा कोई संयंत्र नहीं ,
जो झेल सके प्रकृति का कोप ,
न ही मिसाइल काम आएगी ,
न ही काम आएगी तोप |

हर पल हँसकर , मिलकर जी लो ,
सब अपने हैं , कोई गैर नहीं ,
जाने क्या कल अपनी बारी हो ,
जापान से कोई बैर नहीं |

स्वच्छ गगन सा निर्मल हो मन,
क्यों हो कुहरा , धुंध का पहरा ,
नफरत के धब्बे धुल जायें ,
चढ़े अमिट प्रेमरंग गहरा |
                                            "प्रवेश"

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