Wednesday, February 23, 2011

भाव बढ़ गया मेरा भी

भाव बढ़ गया मेरा भी

मत मांगते थे ,
मेरी गली से गुजरते थे ,
पर मेरे घर के आगे,
कभी नहीं ठहरते थे |

वो जानते थे मतदाता 
सूची में नहीं नाम मेरा ,
क्यों नमन मुझको करें ,
क्यों करें कोई काम मेरा |

जब मिलते तो ऐसे मिलते ,
जैसे जानते नहीं कौन हूँ मैं ,
बीच जयकारा के उनके ,
क्यों अकेला मौन हूँ मैं !

संशोधित हुई सारणी ,
नाम चढ़ गया मेरा भी ,
मैं रहा तो वही "प्रवेश",
पर भाव बढ़ गया मेरा भी  |
                                               "प्रवेश" 

Tuesday, February 22, 2011

गुजारिश

गुजारिश 


जो हमने किया वो गजब तो नहीं ,
खतावार हैं बेअदब तो नहीं |

होंगे तेरे चाहने वाले लाखों ,
मगर हम जैसे वो सब तो नहीं |

झुंझला गई मेरी गुस्ताखी से ,
इंसां हैं दोनों , रब तो नहीं |

गुजारिश है माफ़ी की तुझसे खता की ,
तुझे कोई शिकवा अब तो नहीं |
        
गुजारिश मंजूर       
शिकवा भी तुमसे तुम ही से गिला है ,
ये दर्द -ए - जिगर भी तुम ही से मिला है |

तरफदार हैं हम तुम्हारी खता के ,
अपनी तरफ भी यही सिलसिला है |

बंद पलकों में भी खयाल आपका है,
खुली आँखों में ख्वाबों का काफिला है |

समझ पाओ न अब भी जज्बात मेरे ,
तो समझो आपका कोई पेंच हिला है |
                               "प्रवेश"

Friday, February 18, 2011

तारीफ उनकी

तारीफ उनकी 

उनकी इस शिकायत को 
दूर करना चाहता हूँ ,
"तारीफ नहीं करते आप"
तारीफ करना चाहता हूँ |

आज ठाना है शिकायत 
दूर कर दूंगा सभी ,
महबूब फिर कोई शिकायत 
कर न पायेगा कभी |

कुछ कहूं , तो क्या कहूं ?
झूठ कह सकता नहीं ,
सच कहूं , महबूब मेरा 
सच को सह सकता नहीं |

धर्मसंकट आ पड़ा है ,
वर्ज्य हैं दोनों सत्य - असत्य ,
झूठ कहूं तो पाप लगे ,
महबूब खफा हो बोल के सत्य |

कोई मदद करो मेरी ,
कोई सुझाव उपयुक्त दो ,
धर्मसंकट में फंसा ,
ये मित्र आपका मुक्त हो |
                                          "प्रवेश"

Thursday, February 17, 2011

राजनीति से दूर नेता

राजनीति से दूर नेता

नेता जी के मुख से छूटा
जो विवादास्पद बयान ,
कोई दोष नहीं उनका 
रपट जाती है जबान |

क्या हुआ कुछ बोल दिया ,
क्यों आप हैं इतने परेशान ?
मत तूल दो इन बातों को इतना ,
आखिर ये  भी हैं इंसान |

इनकी  भी ख्वाहिश है ,
ये  भी नेता बनें महान ,
अच्छा बोलने की कोशिश में ,
कभी फिसल जाती है जबान |

ये  वो नहीं जो सत्ता में ,
पद के मद में मगरूर हैं ,
गुड़ से मक्खी की तरह ,
नेता जी  राजनीति से दूर हैं |
                                                              " प्रवेश "

Thursday, February 10, 2011

गधों को हांके कौन ?



ये जो चने का खेत है,
इसके हैं मालिक पचास |
चने के पौंधे छोटे हैं , 
पौंधों से बड़ी हो गयी घास |

एक का हो , तो खैर खबर ले ,
किसकी पचास में जिम्मेदारी ?
कौन भला ये घास उखाड़े ,
कौन करे अब घेरा - बाड़ी ?

गधे घुस गए बेधड़क ,
साफ़ कर गए पूरा खेत |
घास बची न चने बचे ,
बची रह गयी सूखी रेत |

निकम्मे मालिक हों पचास ,
तो उस खेत में झांके कौन ?
कौन करे रखवाली इसकी ,
इन गधों को हांके कौन ?

चने का खेत = प्रजातंत्र 
चने के पौंधे = जनता
मालिक = नेता  
घास = अराजक तत्व 
गधे = भ्रष्ट नेता 

                                                      "प्रवेश "

Wednesday, February 2, 2011

बुक बनाम फेसबुक



फेसबुक की लत से ग्रस्त  छात्र की व्यथा |


जब से मैं फेसबुक पर आया ,
बुक से फेस कभी मिल नहीं पाया |

लगीं कोर्स में कितनी किताबें ,
भूल गया फेसबुक पर आके |

नाम पता नहीं मास्टर जी का,
बिन फेसबुक दिन लगे है फीका |

फेसबुक खा गया बुक की गरिमा ,
ऐसी है फेसबुक की महिमा |

                                                                          "प्रवेश"